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समर्पण

रेंगता रहा ‘कुछ’
रेतीली ज़मीन पर…
निशान बने
और विलुप्त भी
कब आया ?
कब गया ?
किसी ने देखा ?
संभवत: नहीं…
कुछ विचार
सरकते रहे
मानस पटल पर
मध्यम-मध्यम…
नयी रेखा
किसने खींची ?
रहस्य ही रहा…
पहले हल्का
फिर भारी
शब्दों का घेरा
स्वतंत्र था अब
मेरे घेरे से…

-अविचल मिश्र


avichal

By avichal

Avichal Mishra

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