दूर दूर तक फैला हुआ समुद्र…
और फिर ऊँची उठती हुई,
गगनचुम्बी लहरें |
मानो कुछ कहना चाह रही हों ||
मैंने देखा है लहरों को,
मदहोश की तरह,
उठते और गिरते हुए…|
जो करती है उत्पन्न एक आकर्षित दृश्य ||
और फिर शाम को एक अप्रितम छटा,
जब अस्त होता हुआ सूर्य…
कर देता है अपने को,
समुद्र की अनंत गहराइयों में समर्पित |
तब हो जाता है समुद्र,
सूर्य के रंग में परिवर्तित ||
रात्रि पहर, चाँदनी किरणों का,
उन लहरों से क्रीड़ा करना |
जैसे उनका उस पर,
पूर्ण आधिपत्य हो ||
मित्रता भी है,
सूर्य के किरणों की तरह,
सत्य और तेज |
चाँदनी किरणों की तरह,
शीतल और कोमल ||
जिसके विभिन्न रंग प्रदान करते हैं मुझे |
एक नयी प्रेरणा….||
मुझे है पूर्ण विश्वास,
समय चक्र बढ़ने के साथ-साथ |
ये रंग होते जायेंगे,
अत्यंत प्रगाढ़….
हमेशा के लिए….||
– अविचल मिश्र