चकाचौंध
हर तरफ़
दोहरे अस्तित्व में
स्वयं से दूर
मुस्कुराते चेहरे
नयी ज़मीन
तलाशते…
अलग नहीं
मैं भी
भागता हूँ
उन्हीं के रंगों को
सच मानकर…
तेज रोशनी
चमकते सूर्य की
अलौकिक
अनुभूति क्यों ?
गीली मिट्टी सा मन
मेरे प्रभु!
आज फिर
बना दो…✍
-अविचल मिश्र
चकाचौंध
हर तरफ़
दोहरे अस्तित्व में
स्वयं से दूर
मुस्कुराते चेहरे
नयी ज़मीन
तलाशते…
अलग नहीं
मैं भी
भागता हूँ
उन्हीं के रंगों को
सच मानकर…
तेज रोशनी
चमकते सूर्य की
अलौकिक
अनुभूति क्यों ?
गीली मिट्टी सा मन
मेरे प्रभु!
आज फिर
बना दो…✍
-अविचल मिश्र