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Poems

आशा

बिखरे पन्नों से क्या इतिहास बनायें ।
उन्हें याद रखें या फिर भूल जायें ।।

रेत पर नहीं खड़ी हो सकती ऊंची इमारतें ।
आसमान से लंबी नहीं हो सकती काली रातें ।।
प्रभात देखने का मन में विश्वास जगायें ।
सूर्य बनकर दुनियाँ को नयी रोशनी दिखायें ।।

इंसान बंधा रहता है हाथ की लकीरों से हरदम….
क्या वो नहीं चल सकता इसके बिना दो कदम ?
इन लकीरों के चक्रव्युह से अपने को आजाद करायें ।
हम अपने कर्म से अपनी तकदीर खुद सजायें ।।

कुछ इंसान भटक जाते हैं मार्ग से ।
चले जाते हैं गलत दिशा की ओर बस आँखें मूँदकर ।।
तोड़ लेते हैं सारे रिश्तों को अपनों से ।
मिटा देना चाहते हैं मानवता का नामोनिशान ।।

पर हम ऐसी प्रवृति क्यों अपनायें ?
इससे तो अच्छा है कि,
भटके हुये लोगों को हम ।
समाज की मुख्यधारा में वापस लायें ।।

बिखरे पन्नों से क्या इतिहास बनायें ।
उन्हें याद रखें या फिर भूल जायें ।।

– अविचल मिश्र