नतमस्तक था
आराध्य के सामने
मन की आँखों से
एक-एक कर
साफ़ दिखती
सभी कमियाँ
नया प्रण
पूर्ण करने का
अधूरी उन
संकल्पनाओं को
दिन भर घूमती
अंगुलियाँ मेरी
लैपटॉप कीबोर्ड पर
विषय बदलती
उनके अर्थ तलाशती
अगली सुबह
फिर आत्मावलोकन
आभासी प्रयास
और ‘मैं’…✍
-अविचल मिश्र