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लक्ष्य

मैं दूसरों की बातों पर,
क्यों दूँ ध्यान ?
जब वो हैं स्वयं ।
अपने लिए अनजान ।।

वो चाहते हैं अपनी तरह,
मुझे भी लक्ष्य विहीन रखना ।
समाज से कटा,
अलग-थलग सा बनाना ।।

पर मैं भी हूँ चौकस,
हर एक पल….

हर काल का है पता मुझे ।
हर राह पर है नजर ।।
चुन ली है राह मैंने ।
बढ़ना है उस पर अब अनवरत…।।

न है आँधियों की चिंता ।
न तूफानों का भय ।।
लक्ष्य ही है, मेरी प्रतिज्ञा ।
लक्ष्य ही है, मेरा अभिमान ।।

लक्ष्य को प्राप्त करके ।
रखना है आगे…
अपना खोया हुआ,
आत्मसम्मान…।।

– अविचल मिश्र