मस्तिष्क में तैरते हजारों प्रश्न ।
और हर बार की तरह,
आज फिर…
निरुत्तर मेरा मन ॥
अजनबी नहीं वो…
फिर भी,
एक अजीब सी खामोशी ।
बेसुध नहीं मैं…
फिर भी,
दिवास्वप्न सी खुशी ॥
स्वयं से करता हूँ प्रश्न ।
मैं हूँ कौन?
लाख प्रयत्न करूं…
फिर भी,
ये दिल है मौन ॥
कैसा अंतर्द्वंद है ये ?
पागलपन…
दीवानापन…
या फिर,
अपनापन…
कुछ भी हो…
शायद इसलिए ही,
आज मेरा दिल…
धड़कते हुए भी प्रतीत हो रहा है ।
मौन…स्थिर…अज्ञात…॥
– अविचल मिश्र