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मित्रता

दूर दूर तक फैला हुआ समुद्र…

और फिर ऊँची उठती हुई,

गगनचुम्बी लहरें |

मानो कुछ कहना चाह रही हों ||

मैंने देखा है लहरों को,

मदहोश की तरह,

उठते और गिरते हुए…|

जो करती है उत्पन्न एक आकर्षित दृश्य ||

और फिर शाम को एक अप्रितम छटा,

जब अस्त होता हुआ सूर्य…

कर देता है अपने को,

समुद्र की अनंत गहराइयों में समर्पित |

तब हो जाता है समुद्र,

सूर्य के रंग में परिवर्तित ||

रात्रि पहर, चाँदनी किरणों का,

उन लहरों से क्रीड़ा करना |

जैसे उनका उस पर,

पूर्ण आधिपत्य हो ||

मित्रता भी है,

सूर्य के किरणों की तरह,

सत्य और तेज |

चाँदनी किरणों की तरह,

शीतल और कोमल ||

जिसके विभिन्न रंग प्रदान करते हैं मुझे |

एक नयी प्रेरणा….||

मुझे है पूर्ण विश्वास,

समय चक्र बढ़ने के साथ-साथ |

ये रंग होते जायेंगे,

अत्यंत प्रगाढ़….

हमेशा के लिए….||

 –  अविचल मिश्र


avichal

By avichal

Avichal Mishra

14 replies on “मित्रता”

जहां न पहुँचे रवि
वहाँ पहुँचे कवि…
कण-कण में बसी है रचना
अगर ढूँढ सको तो बस कलम थाम लो!!

बहुत सुंदर हृदय को छू लेने कविता लिखने के लिये बहुत बहुत शुभकामनाएँ

प्रकृति रंगों की चित्ताकर्षक छटा बिखेरती हुई आपकी यह कोमल कविता आपके भीतर के कोमल ह्रदय का परिचय कराती है। बहुत खूब।
माँ शारदे की अनुपम कृपा सदैव आपको ऐसे ही अनेक रंगों को उकेरने की शक्ति प्रदान करे।
शुभेच्छुक
राजेन्द्र गुलेच्छा- बेंगलोर

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