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कामना

नये वर्ष का आगमन…
और फिर जन्म लेती हुयी,
अनेक नयी आकांक्षायें…..।

जिसे देना होगा हमें, एक आकार ।
ताकि हम कर सकें, इसे साकार ।।

अपनाना होगा हमें, कर्म के पथ को ।
बढ़ते रहना होगा, लक्ष्य की ओर अनवरत…।।

रखना होगा एक दृढ़ विश्वास,
हाँ…मैं ही हूँ अंतिम विजेता हर पथ का ।
करना होगा आत्मसात,
समुद्र सी गहराई और पर्वत सी ऊँचाई को ।।

जो कर सके प्रदान हमें, एक नया आयाम ।
जो कर सके प्रस्तुत आदर्श, सबके सामने ।।
जिसका कर सकें अनुसरण सभी………

इसे मूर्त रूप देने में,
इतनी सशक्त हो सके हमारी भावना ।
प्रभु से बस यही है एक कामना ।।

– अविचल मिश्र


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अंतर्द्वंद

मस्तिष्क में तैरते हजारों प्रश्न ।
और हर बार की तरह,
आज फिर…
निरुत्तर मेरा मन ॥

अजनबी नहीं वो…
फिर भी,
एक अजीब सी खामोशी ।
बेसुध नहीं मैं…
फिर भी,
दिवास्वप्न सी खुशी ॥

स्वयं से करता हूँ प्रश्न ।
मैं हूँ कौन?
लाख प्रयत्न करूं…
फिर भी,
ये दिल है मौन ॥

कैसा अंतर्द्वंद है ये ?
पागलपन…
दीवानापन…
या फिर,
अपनापन…

कुछ भी हो…
शायद इसलिए ही,
आज मेरा दिल…
धड़कते हुए भी प्रतीत हो रहा है ।
मौन…स्थिर…अज्ञात…॥

– अविचल मिश्र


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लक्ष्य

मैं दूसरों की बातों पर,
क्यों दूँ ध्यान ?
जब वो हैं स्वयं ।
अपने लिए अनजान ।।

वो चाहते हैं अपनी तरह,
मुझे भी लक्ष्य विहीन रखना ।
समाज से कटा,
अलग-थलग सा बनाना ।।

पर मैं भी हूँ चौकस,
हर एक पल….

हर काल का है पता मुझे ।
हर राह पर है नजर ।।
चुन ली है राह मैंने ।
बढ़ना है उस पर अब अनवरत…।।

न है आँधियों की चिंता ।
न तूफानों का भय ।।
लक्ष्य ही है, मेरी प्रतिज्ञा ।
लक्ष्य ही है, मेरा अभिमान ।।

लक्ष्य को प्राप्त करके ।
रखना है आगे…
अपना खोया हुआ,
आत्मसम्मान…।।

– अविचल मिश्र


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आशा

बिखरे पन्नों से क्या इतिहास बनायें ।
उन्हें याद रखें या फिर भूल जायें ।।

रेत पर नहीं खड़ी हो सकती ऊंची इमारतें ।
आसमान से लंबी नहीं हो सकती काली रातें ।।
प्रभात देखने का मन में विश्वास जगायें ।
सूर्य बनकर दुनियाँ को नयी रोशनी दिखायें ।।

इंसान बंधा रहता है हाथ की लकीरों से हरदम….
क्या वो नहीं चल सकता इसके बिना दो कदम ?
इन लकीरों के चक्रव्युह से अपने को आजाद करायें ।
हम अपने कर्म से अपनी तकदीर खुद सजायें ।।

कुछ इंसान भटक जाते हैं मार्ग से ।
चले जाते हैं गलत दिशा की ओर बस आँखें मूँदकर ।।
तोड़ लेते हैं सारे रिश्तों को अपनों से ।
मिटा देना चाहते हैं मानवता का नामोनिशान ।।

पर हम ऐसी प्रवृति क्यों अपनायें ?
इससे तो अच्छा है कि,
भटके हुये लोगों को हम ।
समाज की मुख्यधारा में वापस लायें ।।

बिखरे पन्नों से क्या इतिहास बनायें ।
उन्हें याद रखें या फिर भूल जायें ।।

– अविचल मिश्र


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विचार

विचारमग्न है मन……..

कुछ यूँ ही उमड़ते घुमड़ते विचारों को लेकर |

जो है यथार्थ की कसौटी से कोसों दूर,

परंतु इच्छा है उसे पूर्ण करने की ||

एक विचार जो कभी उपयुक्त लगता है,

अचानक अगले ही क्षण…..

एक नया विचार उत्पन्न हो जाता है |

जो कर लेता है हरण, प्रथम विचार का,

इन्हीं विचारों को लेकर मन हो जाता है उद्वेलित ||

उचित अनुचित के चक्रव्यूह में,

यह  पूरी तरह से जकड़ जाता है |

और अपने को असहाय पाता है ||

आज कुछ ऐसे ही विचार,

मेरे मन में जन्म ले रहे हैं |

किसका चयन करूँ मैं…कौन है सबसे उपयुक्त?

इसी प्रश्न पर विचार करने के लिए,

मैं एक बार फिर..

गम्भीरता से विचार कर रहा हूँ ||

–  अविचल मिश्र


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मित्रता

दूर दूर तक फैला हुआ समुद्र…

और फिर ऊँची उठती हुई,

गगनचुम्बी लहरें |

मानो कुछ कहना चाह रही हों ||

मैंने देखा है लहरों को,

मदहोश की तरह,

उठते और गिरते हुए…|

जो करती है उत्पन्न एक आकर्षित दृश्य ||

और फिर शाम को एक अप्रितम छटा,

जब अस्त होता हुआ सूर्य…

कर देता है अपने को,

समुद्र की अनंत गहराइयों में समर्पित |

तब हो जाता है समुद्र,

सूर्य के रंग में परिवर्तित ||

रात्रि पहर, चाँदनी किरणों का,

उन लहरों से क्रीड़ा करना |

जैसे उनका उस पर,

पूर्ण आधिपत्य हो ||

मित्रता भी है,

सूर्य के किरणों की तरह,

सत्य और तेज |

चाँदनी किरणों की तरह,

शीतल और कोमल ||

जिसके विभिन्न रंग प्रदान करते हैं मुझे |

एक नयी प्रेरणा….||

मुझे है पूर्ण विश्वास,

समय चक्र बढ़ने के साथ-साथ |

ये रंग होते जायेंगे,

अत्यंत प्रगाढ़….

हमेशा के लिए….||

 –  अविचल मिश्र