Author: avichal

  • जिंदगी

    जिंदगी बस ऐसे ही चलती रहे ।
    द्वेष, क्रोध और भय से उन्मुक्त ।।
    प्रेम के पथ पर दौड़ती रहे ।
    जिंदगी बस ऐसे ही चलती रहे… ।।

    एक अंतर्मन और अनंत विचार ।
    परंतु सुनता हूँ, केवल दिल की पुकार ।।
    हर मोड़ पर, सत्य की रोशनी मिलती रहे ।
    जिंदगी बस ऐसे ही चलती रहे… ।।

    नहीं चाहता मैं, अद्वितीय और अलौकिक होना ।
    ऊँचे पर्वत की तरह, अपनी ऊँचाई पर इतराना ।।
    मेरे कदम सबके साथ बढ़ते रहें ।
    जिंदगी बस ऐसे ही चलती रहे.. .।।

    रहूँ आसक्त मैं, प्रभु के लिए ।
    बनू सशक्त मैं, देश के लिए ।।
    परोपकार की ज्योति, हमेशा दिल में जलती रहे ।
    जिंदगी बस ऐसे ही चलती रहे… ।।

     

    – अविचल मिश्र


  • कामना

    नये वर्ष का आगमन…
    और फिर जन्म लेती हुयी,
    अनेक नयी आकांक्षायें…..।

    जिसे देना होगा हमें, एक आकार ।
    ताकि हम कर सकें, इसे साकार ।।

    अपनाना होगा हमें, कर्म के पथ को ।
    बढ़ते रहना होगा, लक्ष्य की ओर अनवरत…।।

    रखना होगा एक दृढ़ विश्वास,
    हाँ…मैं ही हूँ अंतिम विजेता हर पथ का ।
    करना होगा आत्मसात,
    समुद्र सी गहराई और पर्वत सी ऊँचाई को ।।

    जो कर सके प्रदान हमें, एक नया आयाम ।
    जो कर सके प्रस्तुत आदर्श, सबके सामने ।।
    जिसका कर सकें अनुसरण सभी………

    इसे मूर्त रूप देने में,
    इतनी सशक्त हो सके हमारी भावना ।
    प्रभु से बस यही है एक कामना ।।

    – अविचल मिश्र


  • अंतर्द्वंद

    मस्तिष्क में तैरते हजारों प्रश्न ।
    और हर बार की तरह,
    आज फिर…
    निरुत्तर मेरा मन ॥

    अजनबी नहीं वो…
    फिर भी,
    एक अजीब सी खामोशी ।
    बेसुध नहीं मैं…
    फिर भी,
    दिवास्वप्न सी खुशी ॥

    स्वयं से करता हूँ प्रश्न ।
    मैं हूँ कौन?
    लाख प्रयत्न करूं…
    फिर भी,
    ये दिल है मौन ॥

    कैसा अंतर्द्वंद है ये ?
    पागलपन…
    दीवानापन…
    या फिर,
    अपनापन…

    कुछ भी हो…
    शायद इसलिए ही,
    आज मेरा दिल…
    धड़कते हुए भी प्रतीत हो रहा है ।
    मौन…स्थिर…अज्ञात…॥

    – अविचल मिश्र


  • लक्ष्य

    मैं दूसरों की बातों पर,
    क्यों दूँ ध्यान ?
    जब वो हैं स्वयं ।
    अपने लिए अनजान ।।

    वो चाहते हैं अपनी तरह,
    मुझे भी लक्ष्य विहीन रखना ।
    समाज से कटा,
    अलग-थलग सा बनाना ।।

    पर मैं भी हूँ चौकस,
    हर एक पल….

    हर काल का है पता मुझे ।
    हर राह पर है नजर ।।
    चुन ली है राह मैंने ।
    बढ़ना है उस पर अब अनवरत…।।

    न है आँधियों की चिंता ।
    न तूफानों का भय ।।
    लक्ष्य ही है, मेरी प्रतिज्ञा ।
    लक्ष्य ही है, मेरा अभिमान ।।

    लक्ष्य को प्राप्त करके ।
    रखना है आगे…
    अपना खोया हुआ,
    आत्मसम्मान…।।

    – अविचल मिश्र


  • आशा

    बिखरे पन्नों से क्या इतिहास बनायें ।
    उन्हें याद रखें या फिर भूल जायें ।।

    रेत पर नहीं खड़ी हो सकती ऊंची इमारतें ।
    आसमान से लंबी नहीं हो सकती काली रातें ।।
    प्रभात देखने का मन में विश्वास जगायें ।
    सूर्य बनकर दुनियाँ को नयी रोशनी दिखायें ।।

    इंसान बंधा रहता है हाथ की लकीरों से हरदम….
    क्या वो नहीं चल सकता इसके बिना दो कदम ?
    इन लकीरों के चक्रव्युह से अपने को आजाद करायें ।
    हम अपने कर्म से अपनी तकदीर खुद सजायें ।।

    कुछ इंसान भटक जाते हैं मार्ग से ।
    चले जाते हैं गलत दिशा की ओर बस आँखें मूँदकर ।।
    तोड़ लेते हैं सारे रिश्तों को अपनों से ।
    मिटा देना चाहते हैं मानवता का नामोनिशान ।।

    पर हम ऐसी प्रवृति क्यों अपनायें ?
    इससे तो अच्छा है कि,
    भटके हुये लोगों को हम ।
    समाज की मुख्यधारा में वापस लायें ।।

    बिखरे पन्नों से क्या इतिहास बनायें ।
    उन्हें याद रखें या फिर भूल जायें ।।

    – अविचल मिश्र


  • विचार

    विचारमग्न है मन……..

    कुछ यूँ ही उमड़ते घुमड़ते विचारों को लेकर |

    जो है यथार्थ की कसौटी से कोसों दूर,

    परंतु इच्छा है उसे पूर्ण करने की ||

    एक विचार जो कभी उपयुक्त लगता है,

    अचानक अगले ही क्षण…..

    एक नया विचार उत्पन्न हो जाता है |

    जो कर लेता है हरण, प्रथम विचार का,

    इन्हीं विचारों को लेकर मन हो जाता है उद्वेलित ||

    उचित अनुचित के चक्रव्यूह में,

    यह  पूरी तरह से जकड़ जाता है |

    और अपने को असहाय पाता है ||

    आज कुछ ऐसे ही विचार,

    मेरे मन में जन्म ले रहे हैं |

    किसका चयन करूँ मैं…कौन है सबसे उपयुक्त?

    इसी प्रश्न पर विचार करने के लिए,

    मैं एक बार फिर..

    गम्भीरता से विचार कर रहा हूँ ||

    –  अविचल मिश्र


  • मित्रता

    दूर दूर तक फैला हुआ समुद्र…

    और फिर ऊँची उठती हुई,

    गगनचुम्बी लहरें |

    मानो कुछ कहना चाह रही हों ||

    मैंने देखा है लहरों को,

    मदहोश की तरह,

    उठते और गिरते हुए…|

    जो करती है उत्पन्न एक आकर्षित दृश्य ||

    और फिर शाम को एक अप्रितम छटा,

    जब अस्त होता हुआ सूर्य…

    कर देता है अपने को,

    समुद्र की अनंत गहराइयों में समर्पित |

    तब हो जाता है समुद्र,

    सूर्य के रंग में परिवर्तित ||

    रात्रि पहर, चाँदनी किरणों का,

    उन लहरों से क्रीड़ा करना |

    जैसे उनका उस पर,

    पूर्ण आधिपत्य हो ||

    मित्रता भी है,

    सूर्य के किरणों की तरह,

    सत्य और तेज |

    चाँदनी किरणों की तरह,

    शीतल और कोमल ||

    जिसके विभिन्न रंग प्रदान करते हैं मुझे |

    एक नयी प्रेरणा….||

    मुझे है पूर्ण विश्वास,

    समय चक्र बढ़ने के साथ-साथ |

    ये रंग होते जायेंगे,

    अत्यंत प्रगाढ़….

    हमेशा के लिए….||

     –  अविचल मिश्र