मेरा हिस्सा

मेरा हिस्सा
दो मुझे
अपनी यादों का…
दिखा एक
शून्य
बेवजह
उन ख़ूबसूरत
पलकों पर…
मैं नहीं
‘वैसा’
असमंजस
हर पल…
आख़िर
क्यों ओढ़ना
मेरे मैले
आवरण को ?
झूठ नहीं
ध्यान से देखो!
कई रंग मेरे
सभी कहते…
कोई उत्तर नहीं
प्रश्न उसे
ग़लत लगा
मुझसे भी ज़्यादा…✍

-अविचल मिश्र


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