Categories
Poems

खुलकर जीते हैं…

चलो…खुलकर जीते हैं ।
खामोशी से क्या मिलेगा ?
इन ख्यालों में डूबकर क्या मिलेगा ?
चलो…खुलकर जीते हैं ।।

हर पल ये अजीब सी उदासी क्यों ?
जिंदगी से इतनी बेरुखी क्यों ?
जीवन को पहचानो…।
हर पल इसके महत्व को जानो…।।
ये बार-बार टूटना क्यों ?
ठेस लगी तो फिर बिखरना क्यों ?

चलो…खुलकर जीते हैं ।
आजाद परिंदों की तरह,
उड़ना सीखते हैं…
चलो…खुलकर जीते हैं ।।

कोई नहीं साथ तो क्या हुआ ?
दिन के उजाले में मत देखो कोई धुआँ ।
खुद को भ्रमित रखकर क्या मिलेगा ?
कोसने से तो ये दिल,
और भी पत्थर होगा ।।
तंग चेहरा और दबी आवाज से,
नहीं होगी पहचान ।
आगे बढ़ो…
इसी से मिलेगा समस्या का समाधान ।।

झूठ का आवरण…
आज निकालकर,
फेक देते हैं ।
चलो…खुलकर जीते हैं ।।

नीले आसमान में बिखरी,
इंद्रधनुषी छटा ।
ऊँचे पर्वत से झरने का,
अपने ही अंदाज में गिरना ।।
फूलों की खुशबू का,
मस्तिष्क के हर एक कोने को कैद करना ।
और फिर धीरे से,
एक नये अवसर की सुगबुगाहट का होना ।।

तो क्यों नहीं हम बढ़ सकते हैं उस पथ पर ?
जहाँ सिर्फ खुशियाँ हों,
हमारे कर्म की…
हमारे सद्गुणों की…
और हमारे सच्चे प्रयास की…

तो चलो न…
खुलकर जीते हैं ।
अपने सारे दु:खों को पीछे छोड़ते हैं,
एक नयी दुनिया को साकार करते हैं,
चलो…खुलकर जीते हैं ।।

– अविचल मिश्र


avichal

By avichal

Avichal Mishra

One reply on “खुलकर जीते हैं…”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.